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Monday 1 May 2017

Khwaab - Ghazal

ख़्वाब 

आँखें बंद हो 
और ख्वाब की 
वजह तुम हो 



मेरे हमदम हेरे हमराज़ 
कोई दूसरा ना हो 

में सोचूँ  तेरे बारे 
या देखूं टूटता तारा 
फलक पर आसमां पर 
हो बस तेरा नज़ारा 

ऐसा खेल खेला 
मेरी तन्हाईयों ने 
की भूला भटका बेचारा 
हुआ में आवारा 

गर मिलो कूचे पे
ऐ मेरे हमदम 
तुझे देखूं जी भर के 
ऐसा हो नज़ारा

इस कदर तेज़ है 
ये आंधी हरदम 
की अब तो ख्वाब भी 
ना बैठे पालक पर दुबारा 



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